58 लाख का बिल, दो महीने भर्ती रही बच्ची मगर बच नहीं पाई, गंगाराम अस्पताल विवादों के घेरे में

58 लाख का बिल, दो महीने भर्ती रही बच्ची मगर बच नहीं पाई, गंगाराम अस्पताल विवादों के घेरे में

अंबुज यादव

आज के समय में अक्सर डॉक्टरों और प्राइवेट अस्पतालों पर पैसे की वजह से सही से ईलाज नहीं करने के आरोप लगते रहते हैं। जिसकी वजह से लोगों का भरोसा भी लगभग सभी प्राइवेट डॉक्टरों और अस्पतालों पर से उतरता जा रहा है। आये दिन ऐसी खबर आ जाती हैं कि डॉक्टरों की लापरवाही की वजह से पेशेंट की जान चली गई है और अस्पताल पैसे की वजह से परिवार वालों के साथ गलत व्यवहार कर रहा है। यही नहीं यहां तक सुनने को मिलता है कि अस्पताल प्रशासन पेशेंट की डेड बॉडी को भी परिवार को सौंपने से मना कर देता है। ऐसा ही कुछ आरोप दिल्ली  स्थित सर गंगाराम अस्पताल के ऊपर लगा है। पटना की रहने वाली बच्ची प्रियांशी आनंद को 21 अक्टूबर 2019 को सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां पर उसका इलाज लगभग 2 महीने तक चला। लगातार 2 महीने इलाज चलने के बाद प्रियांशी का देहांत 21 दिसम्बर को हो गया। परिवार वालों का कहना है कि डॉक्टर की लापरवाही की वजह से उन्होंने अपनी बच्ची खोई है।

इस मामले में मृतक बच्ची के ममेरे भाई सतीश कुमार ने Sehatraag.com को बताया कि प्रियांशी को हल्का बुखार और उल्टी हो रही थी, तो हल्की-फुल्की बीमारी मान कर घरवालों ने पटना में ही डॉक्टरों को दिखाया। सभी ने सामान्य बताते हुए दवाईयां दी। लेकिन फिर भी आराम नहीं हुआ तब एक डॉक्टर ने बताया कि प्रियांशी के लंग्स में इंफेक्शन हो गया है। उस डॉक्टर ने ही घरवालों को अच्छे अस्पताल में ईलाज करवाने की सलाह दी। तब परिजन प्रियांशी को ट्रेन से दिल्ली लेकर आये। यहां उन लोगों ने सर गंगाराम अस्पताल में दिखाया, जहां दिखाने पर डॉक्टर धीरेन्द गुप्ता ने बताया की बच्ची की हालत गंभीर है। उन्होंने तुरंत भर्ती कराने को कहा, जिसके बाद घरवालों ने बच्ची को यहां पर भर्ती करा दिया। उसके बाद प्रियांशी का कई दिनों तक ईलाज चलता रहा।

डॉक्टरों ने घरवालों को जैसा-जैसा करने को कहा वैसे ही उन्होंने किया। सतीश कुमार का कहना है कि देखते ही देखते अस्पताल वालों ने 58 लाख का बिल बना दिया। उसी दौरान डॉक्टरों ने बताया कि प्रियांशी को खून की कमी है, तो प्रियांसी को खून देने के लिए अस्मिता थियेटर ग्रुप के लोग आगे आए और उन लोगों ने प्रियांशी को जितने ब्लड की जरुरत थी उतना दिया। लेकिन लगभग 2 महीनों तक ईलाज के बाद भी डॉक्टर बच्ची को नहीं बचा पाए। 21 दिसम्बर को बच्ची ने इस दुनिया से विदा ले ली। वहीं सतीश कुमार ने अस्पताल पर आरोप लगाया कि प्रियांशी की मौत के बाद अस्पताल ने बच्ची की बॉडी देने से भी मना कर दिया था। क्योंकि अस्पताल का पूरा बिल अभी तक घरवालों ने जमा नहीं किया था। दरअसल अस्पताल ने इलाज का पूरा खर्च करीब 58 लाख रुपये का बताया, जिसमें से 40 लाख रुपये जमा कराए गए थे और शेष रुपये जमा होने से पहले बच्ची की मौत हो गई थी। सतीश कुमार व घरवालों का आरोप है कि अस्पताल ने बिना शेष 18 लाख रुपए जमा कराए प्रियांशी की डेड बॉडी देने से इंकार किया था, जिसके बाद स्टेट बैंक के आला अधिकारियों द्वारा भुगतान का आश्वासन देने पर परिजनों को बच्ची का शव दिया गया।

हालांकि इस बारे में अस्पताल प्रशासन ने अपनी कोई भी गलती होने से इनकार कर दिया है। सर गंगाराम अस्पताल के बाल आईसीयू के निदेशक डॉक्टर अनिल सचदेव ने एक लिखित बयान में sehatraag.com को बताया कि प्रियांशी को जब गंगाराम अस्पताल लाया गया था तब उसे सांस लेने में गंभीर तकलीफ हो रही थी और उसे वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखने की जरूरत थी। उसे टीबी की दवा दो सप्ताह से दी जा रही थी। धीरे धीरे उसकी हालत और भी बिगड़ गई और उसे एक्स्ट्रा कॉरपोरियल मेंबरेन ऑक्सीजेनेशन (ईसीएमओ) देने की जरूरत पड़ गई। डॉक्टर सचदेव का दावा है कि परिजनों को ये बता दिया गया था कि बच्ची की हालत बेहद खराब है और ईसीएमओ के बावजूद उसके ठीक होने की गारंटी नहीं ली जा सकती। अस्पताल का दावा है कि दैनिक आधार पर परिजनों की काउंसलिंग भी की जाती रही। डॉक्टर सचदेव का कहना है कि जहां तक फीस की बात है, प्रियांशी के इलाज का सारा खर्च स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने उठाया है। ये कहना गलत है कि परिजनों से कोई पैसा चार्ज किया गया है। अस्पताल ने जो इलाज किया है उसके बारे में परिजनों ने एम्स के डॉक्टरों से भी पूछा और उन्होंने भी इलाज से सहमति जताई। बिना पूरा भुगतान किए शव नहीं देने के आरोप का भी डॉक्टर सचदेव ने खंडन किया। उन्होंने कहा कि खुद परिजनों ने आग्रह किया था कि चूंकि बच्ची का निधन देर रात हुआ है इसलिए शव को अस्पताल की मोर्चरी में रखा जाए। सुबह शव परिजनों को सौंप दिया गया।

दूसरी ओर परिवार वालों ने अस्पताल की बातों का खंडन करते हुए कहा कि जब हम अपनी बच्ची को लेकर गये तो बच्ची अपने पैरों पर गई थी और डॉक्टरों ने कहा था कि बच्ची को भर्ती करा दीजिए वो ठीक हो जाएगी। जहां तक खर्च का सवाल है, बिना 58 लाख रुपये मिले शव नहीं देने की बात सच है और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों के भुगतान के आश्वासन पर ही अस्पताल ने शव दिया।

इस घटना पर सोशल मीडिया पर भी हलचल मची हुई है। अस्मिता थियेटर ग्रुप के अरविंद गौड़ ने इस घटनाक्रम को फेसबुक पर पोस्ट किया है और उन्होंने इस मामले को लेकर अस्पताल की काफी निंदा की है। उन्होंने सरकार को इस पर कदम उठाने का आग्रह भी किया है। वही सोशल मीडिया पर कई लोगों ने और भी मामलों को उठाया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि सर गंगा राम अस्पताल में ये कोई पहली बार नहीं हुआ है। इसके पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है, जो लोगों की नजरों में नहीं आया है।

फिलहाल अगर ऐसा कुछ हुआ है तो राज्य और केंद्र सरकार से हम आग्रह करेंगे कि ऐसे अस्पतालों पर कुछ ठोस कदम उठाए जाएं। यही नहीं आगे किसी परिवार के साथ ऐसा न हो इसलिए ठोस कदम उठाना जरुरी है।

 

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